Skip to main content

जब मेरे पुत्र इन आस्तीन के साँपों के लिये फिर ....................

मैं कभी
सोने की चिड़िया था
कभी नन्दनवन था
कभी मैं
देवों के लिये मनभावन था
प्रसारित होता था
मुझसे......
एकता प्रेम, विश्वबन्धुतव का
संदेश
था मैं शान्ति का प्रतीक
अति पावन था यह भारत देश
पर आज
मेरी सीमाएँ
सुलग रही हैं
कही माओवदी आग लगा रहे हैं
कही अलगाववादी लोगों को
भगा रहे हैं
कही आतंकवादी
हमको उड़ाने की
योजना बना रहे हैं
कहीं बन विस्फोट हो रहे हैं
कही सरे आम गोलियाँ चल रही हैं
कही पर कर्फ्यू लगा है
कही प्रदर्शन हो रहा है
ये सब देख कर मैं रो पड़ता हूँ
सच में........
आज मैं केसी करुण कवि की
कारुण्यपूर्ण कविता से भी
करुण कविता हूँ
हमनें अपने ऊपर ही पालें हैं
आस्तीन के साँप कई
आज वो हम्को दँसने लगे हैं
हमको हमारी सीमाओं के
संकोच में कसने लगे हैं
सदियों से की गयी सहृदयता का
ये सुपरिणाम है
हमारे अनेक भू-भाग आज
हमारे दुष्मनों के नाम हैं
कभी कभी अपना पुनरावलोकन भी
करने लगता हूँ मैं
तब हमें लगता है कि
कितना ग़लत किया था
इन आस्तीन के साँपों को पालकर
अन्त में बैठ जात हूँ मै
अपने विचारों से हारकर
और सोचता हूँ
मेरी व्यथा तभी कथा बन सकेगी रामायणी
जब मेरे पुत्र इन आस्तीन के
साँपों के लिये
फिर ....................
"जनमेजय का नागयज्ञ"
करेंगे
और इअस बार
वे इन नागों को
छिपने का कोई अवसर नही देगें
एक-एक कर सबको..........................

Comments

Mukesh said…
बहुत अच्छी कविता है ।
धन्यवाद

Popular posts from this blog

प्रेम

भारतीय संस्कृति में प्रेम के अनेक रूप हैं-वात्सल्य,स्नेह,अनुराग,रति,भक्ति,श्रद्धा आदि। परन्तु वर्तमान समय में प्रेम मात्र एक ही अर्थ में रूढ हो गया है, वो है प्यार जिसको अंग्रेज़ी मे "LOVE" कहते हैं। प्रथमतः प्रेम शब्द कहने पर लोगो के मस्तिष्क में इसी "LOVE" का दृश्य कौंधता है। प्रत्येक शब्द की अपनी संस्कृति होती है । उसके जन्मस्थान की संस्कृति, जहाँ पर उस शब्द का प्रथमतः प्रयोग हुआ। अतः प्रेम और "LOVE" को परस्पर पर्यायवाची मानने की हमारी प्रवृत्ति ने प्रेम शब्द से उसकी पवित्रता छीन ली है। परिणामतः प्रेम शब्द कहने से हमारे मस्तिष्क में अब वह पावन भाव नही आता जो हमें मीरा,सूर, कबीर,तुलसी, जायसी, घनानन्द, बोधा, मतिराम, ताज, रसखान,देव और बिहारी प्रभृत हिन्दी कवियों तथा कालिदास जैसे संस्कृत कवियो की रचनाओं में देखने को मिलता है। आज हम विस्मृत कर चुके हैं कि इस"LOVE" के अतिरिक्त भी प्रेम का कोई स्वरूप होता है। आज का "प्रेम कागज़ी फूलों के गुलदस्तों" में उलझकर अपनी वास्तविक सुगन्ध खो बैठा है। आज हम अपने शाश्वत, सनातन प्रेम के उस स्वरूप को व...

मृगमरीचिका में खोया है वसन्त

वसन्त ऋतु आयी । वसन्तपञ्चमी का उत्सव भी धूमधाम से सम्पन्न हुआ । पीले वस्त्रों ने पीले पुष्पों की रिक्तता के अनुभव को कुछ कम करने का प्रयास किया । साहित्यजगत् से लेकर सामान्य जगत् तक पराग, मकरन्द, किंशुक, सुगन्ध, पुष्प, कोपल, पल्लव, किंजल्क आदि अनेक वासन्ती शब्द सुनायी देने लगे । शब्दों में, कपड़ों में, चित्रों में एक दिन के लिये वसन्त का आभास होंने लगा । इस आभास से मन भी वासन्ती अभा में आभासित हो चला । पर बिना पुष्प देखे, पराग के स्पर्श से आती हुयी वायुपुञ्जों की सुगन्धि का अनुभव किये भला मन कैसे वसन्ती हो सकता है । पत्रा में वसन्त आ जाने से तिथि-परिवर्तन होते ही उत्सव तो प्रारम्भ हो जाता है, पर मानस की वास्तविक उत्सवधर्मिता तो प्रकृति के उत्सव एवं आह्लाद से नियन्त्रित होती है । प्रकृति का आह्लाद ही हृदय एवं मन को उल्लसित कर सकता है । कृत्रिम उल्लास तो चन्द क्षणों का अतिथि होता है, जो उसका आतिथ्य स्वीकार करते ही अपनी आगे की यात्रा हेतु प्रस्थान करता है । प्रकृति के अभाव में कृत्रिमता कबतक वास्तविक आनन्दानुभूति का अभिनय कर सकती है । एक आदर्श अभिनेत्री की भाँति कृत्रिमता अपना लावण्य दिख...

राष्ट्रद्रोही अपने कुकृत्यों व करतूतों द्वारा JNU में पढ़ने आने वाली देश की प्रज्ञा का अपमान न करें और उसे बदनाम न करें

JNU आजकल राष्ट्रद्रोही गतिविधियों, कश्मीर के अलगाववाद व पाकिस्तान-परस्त नारों के कारण चर्चा में है। कुछ लोगों व गिरोहों की काली करतूत के कारण यह प्रतिष्ठान अपनी प्रतिष्ठा खो रहा है। #JNU वह प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान है जिसने देश को अनेक नीति-नियन्ता, विचारक, शिक्षक, विद्वान व प्रशासक दिये हैं। हमारे सैन्य अधिकारियों को भी JNU डिग्री देता है। राष्ट्र-विकास व राष्ट्र-प्रतिष्ठा के विविध क्षेत्रों में इस विश्वविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यद्यपि यहाँ लगभग हल काल में कुछ राष्ट्रद्रोही व्यक्ति व गिरोह रहे हैं परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि पूरा विश्वविद्यालय ही द्रोही व विध्वंसात्मक है। यहाँ से अनेक ऐसी प्रतिभायें भी प्रसूत हुयी हैं जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया है। अनेक ऐसे लोग भी हुये हैं जो यहाँ विद्यार्थी जीवन में वामपंथ के तिलिस्म में फंसे तो जरूर पर परिसर से बाहर निकलते ही उस तिलिस्म से निकलकर राष्ट्रसेवा में लग गये। अनेक लोग हैं जिन्हें राष्ट्रीय अस्मिता का प्रत्यभिज्ञान हुआ है। #JNU भारत का एक ऐसा विश्वविद्यालय है जहाँ आप न्यूनतम व्यय पर गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा सहजता से...