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Showing posts from May, 2014

भाजपा का सराहनीय कदम...

भाजपा ने श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में दक्षेस के सभी देशों को न्यौता दिया जाना निश्चय ही स्वागतयोग्य कदम है। इसकी सराहना होनी चाहिये। सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से हमारे चिर सहचर और सहगामी इन देशों को विशेष स्थान देना आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य था। हजार झंझावातों, कटुता और मनमुटाव के बीच भी हम इस अकाट्य सत्य को नहीं विस्मृत कर सकते की हममें आधारभूत रूप से एक ही संस्कृति का प्रवाह अनुस्यूत है। इन सभी दक्षेस देशों के जन-मन में भावों का जो उद्गार है वह एक धरातल पर जाकर कहीं न कहीं एक होता है ठीक उसी तरह जैसे डेल्टा की सभी धारयें समुद्र में एक हो जाती है। भाजपा के इस समन्वयकारी और सौहार्द्रपूर्ण कदम की कुछ लोग पानी पी-पीकर निन्दा कर रहे हैं । आश्चर्य की पराकाष्ठा तब होती है जब हम देखते हैं कि इस मुहिम में वे लोग बहुत आगे हैं जो कल तक इन सभी देशों के बहुत बड़े पक्षधर हुआ करते थे, जो बांग्लादेशी घुसपैठ पर मौन, पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मौन, कश्मीरी पण्डितों पर मौन, तिब्बत पर मुँह सिले बैठे थे। आज यही लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं । लोटे तो बहुत देखे थे बेपेंदी के

राष्ट्र-ध्वन्स के स्वप्नदृष्टा...

कुछ लोग ऐसे भी हैं हमारे देश में जिनको राष्ट्र-ध्वंस में अपार आनन्द आता है। जो इस देश को तार-तार करने के सपने से आननदरसपान कर भावविभोर और आत्ममुग्ध हुआ करते हैं। कोई भी ऐसी बात जो सामज् को जोड़े वाली हो, समाज में विखण्डन एवम् विभ‘झ्जन के विरुद्ध हो उसको देखते ही इनको बदहजमी हो जाती है। आजकल इनकी इस अपच को विश्व-संचार कराने के लिये एक साधन भी मिल गया है यह फेसबुक । ऐसे लोग जिनको प्रायः Intellectual बुद्धिजीवा अथवा बुद्धिमान् कहा जाता है, आज कल विशेष आहत दृष्टिगत होते हैं । वे इतने आहत हैं कि उन्होंने फेसबुक को चिकित्सालय समझ लिया है। मकड़ी जितनी निपुणता से आत्मरक्षा के लिये अपना जाल बनाती है, ये उससे भी अधिक निपुणता से अपनी और अपनी विचारधारा के रक्षार्थ शाब्दिक जाल बनाते हैं, उसे भारी-भरकम शब्दों से सजाते हैं। मकड़ी तो जाल बनाने में अपना कुछ श्रम और व्यय भी करती है, ये भी कुछ ऐसा करते हैं इस बात पर संदेह है। ऐसे कई ’सज्जन’ और ’जनहितैषी’ फेसबुक पर ऐसे गरल उगल रहे हैं, जिसा कि समुद्रमन्थन में भी न निकला होगा । अब इनका गरल पीने के लिये किसी को नीलकण्ठ बनना आवश्यक हो गया है। वैसे भी इस जमात स

जनादेश एवं अपेक्षायें...

मँहगाई से व्यथित, विभिन्न क्षेत्रों में आतंक से लेकर क्षेत्रीय गुण्डाराज, अवैध वसूली, कचहरी और थानों के व्यर्थ चक्कर से पीड़ित, विभिन्न व्यथाओं से व्यथित जनता ने अबकी बार समवेत स्वर से व्यापक जनादेश दिया है। इस जनादेश के साथ ही यह आशा और विश्वास भी जताया है कि विकास होगा, जिसका लाभ जन-जन को मिलेगा। श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी अपने प्रथम चरण से इसी बात का संकेत दिया है कि उनकी प्राथमिकता देश का विका स और व्यवस्था का पुनर्स्थापन है। जब व्यथा बड़ी होती है, तब आवश्यकता भी बड़ी हो जाती है और अपेक्षायें भी बड़ी होती हं । जितनी बड़ी अपेक्षायें होती हैं, उतनी ही बड़ी बाधायें भी आती हैं उनकी पूर्णता के मार्ग में । यही सदिच्छा है कि विभिन्न अटकलों, अवरोधों एवं बाधाओं को पार करते हुये श्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में भारतीय जनता की अपेक्षायें एवम् इच्छायेम् पूर्ण हो सकें । देश निराशा के वातावरण से आशा के प्रकाशमय जगत् तक की यात्रा कर सके। बहुत दिनों तक कालिमा थी, अन्धकार छाया हुआ था, मार्ग नहीं सूझता था। पिछली यूपीए सरकार में तो ऐसी कालिमा थी जैसे चन्द्रमा की चन्द्रिका को भी राहु ने ग्रस लिया हो

युवा युग विजेता है...

कल संसदीय दल की बैठक में एवं बैठक से पूर्व जो दृश्य जनमानस के समक्ष उपस्थित हुआ वह निश्चय ही अभिभूत कर देने वाला था। लोकतन्त्र के एक नये युग का सूत्रपात हो चुका है, जिसमें एक नवल स्फूर्ति है, नयी ऊर्जा है और नवोत्थान की अभूतपूर्व प्रेरणा है। जिसकी आत्मा ही दैदीप्यमान शक्तिपुञ्ज से वेष्टित है। लोकतन्त्र मन्दिर है ऐसा पुस्तकों के अलंकृत शब्दों में दिखायी पड़ता था या कतिपय जिह्वाओं पर भूषित होता था पर न्तु श्री नरेन्द्र मोदी ने लोकतन्त्र मन्दिर है इस बात को मनसा-वाचा-कर्मणा सिद्ध कर दिया। ड्योढ़ी पर प्रणाम और श्रद्धाज्ञापन हमारी प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा है, उस परम्परा का निर्वहन करते हुये न केवल मोदी जी ने अपनी हार्दिक भक्ति दिखायी है अपितु इस देश के जनमानस को परम्पराओं के प्रति श्रद्धा और विश्वास का भी संदेश दिया है। संशदीय दल की बैठक में श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उच्चरित शब्द-शब्द अत्यन्त विश्वासपूर्ण था। उत्साह, उमंग और उल्लास का जो समावेश उस अद्भुत वाणी में था, उससे जो ऊर्जा निकलती है, वह है आशा की ऊर्जा, विश्वास की ऊर्जा, एक तेजपुञ्ज के स्रुजन और संस्कार की ऊर्जा। यह ऊर्जा न केवल भा