राष्ट्र के ऊर्जापुञ्ज युवाशक्ति के संवर्द्धन, परिवर्द्धन
एवं व्यक्तित्व-विकास को समर्पित विद्यार्थी आन्दोलन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्
आज के ही दिन ९ जुलाई १९४९ को अपने ध्येय-पथ पर भारतीयकरण के अभियान के साथ आधिकारिक
रूप से अग्रसर हुआ। अपने स्थापना काल १९२५ से ही देश की स्वतन्त्रता एवं राष्ट्र पुनर्निर्माण
में तत्पर स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से इस युवा-विकास-पुञ्ज
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का स्वतन्त्रता के अरुणिमा के बाद परिमल समीर के प्रवाह
सा आगमन हुआ और तभी से युवाशक्ति के उत्थान एवं राष्ट्रोत्थान के विभिन्न दायित्वों
का निर्वाह करते हुये यह समीर आजतक निरन्तर अहर्निश अपने गति, लय और तेज के साथ हर
प्रकार के अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध बिगुल बजाते हुये तथा निर्माण एवं सृजन का नूतन
व सुदृढ़ आधार प्रदान करते हुये प्रवाहित है। इस प्रवाह को समय-समय पर अखिल भारतीय विद्यार्थी
परिषद् के कुशल नेतृत्व द्वारा किये जाने वाले आन्दोलनों, विरोधों एवं अन्याय के विरुद्ध
उठने वाले सशक्त स्वरों से प्राणऊर्जा मिलती रही है। चाहे वह पूर्वोत्तर में बांग्लादेश
से हो रही घुसपैठ हो अथवा कश्मीर में फैला उपद्रव या अलगाववाद या बलात्कार और अन्य
सामाजिक कुरीतियाँ व अत्याचार, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का युवा सदा हर विषय
में सजग रहा है और आवश्यकता पड़ने पर सड़क पर उतरने और अन्यायों से टक्कर लेने में भी
तनिक न डिगा है। किसी भी प्रकार की सामाजिक, सामरिक, देश की आन्तरिक एवम् बाह्य समस्याओं
से विद्यार्थी परिषद् ने न कभी मुँह मोड़ा है न पीठ दिखायी है। इसका इतिहास इस बात का
साक्षी हि कि जिस किसी विषय को इसने उठाया है उसे उसके अन्तिम लक्ष्य तक ले गया है।
वह विषय समाज के लिये परिणामकारी एवं कल्याणकारी रहा है। इन्दिरा सरकार ने जब देश पर
आपातकाल की कालिमा पोती और पूरा देश एक बार कराह उठा तथा एक जन-अन्दोलन उमड़ा, अनेक
नेता और समाजसेवी तथा सामान्य नागरिक आपातकाल के विरोध में जेल गये तब अखिल भारतीय
विद्यार्थी परिषद् का युवा चुप न बैठा। उसने भी इस अन्याय का घोर विरोध किया और बड़ी
संख्या में इसके कार्यकर्ता जेल गये। अन्ततः आपातकाल का कलंकित काला बादल छँटा और पूरे
देश की जनता में इसकी पुनरावृत्ति न हो ऐसी भावना जगा गया। शासनसत्ता को भी यह चेतावनी
दे गया कि इस अमानवीय कार्य की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिये और न ही ऐसा कार्य इस
देश की जनता सहन करेगी, वह इसके विरोध में सड़क पर उतरेगी।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने १९५२ में साक्षरता अभियान
प्रारम्भ किया और राष्ट्रीय स्तर पर अनेक सम्मेलनों सहित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन
किया। यह संगठन १९६१ में गोआ मुक्तिसंघर्ष का सहभागी रहा। परिषद् ने १९६१ में चीन के
आक्रमण का प्रतिरोध किया और १९६५ में पाकिस्तानी आक्रमण के विरुद्ध जनजागरूकता में
सहभागी रहा। ग्रामीण भारत में शिक्षा एवं साक्षरता पर बल देते हुये परिषद् द्वारा ग्रामीण
शिक्षा कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता को सुनिश्चित करने
के लिये १९६६ में “Students’ Experience
in interstate living’ प्रोजेक्ट प्रारम्भ
किया गया, जिसके अन्तर्गत पूर्वोत्तर क्षेत्र के विद्यार्थियों का भारत के अन्य क्षेत्रों
में प्रवास, निवास एवं भ्रमण एवं अन्य क्षेत्रों के विद्यार्थियों का पूर्वोत्तर में
प्रवास, निवास एवं भ्रमण आयोजित किया जाने लगा। यह कार्यक्रम आजतक अनवरत् जारी है।
विद्यार्थी परिषद् ने शिक्षा सुधार, समाज सुधार पर लगातार ध्यान दिया है, प्रदर्शन
किये हैं, सरकारों को ज्ञापन दिया है और परिवर्तन को बाध्य किया है। भ्रष्टाचार जो
इस देश में एक ज्वलन्त समस्या के रूप में व्याप्त है, उसके विरुद्ध विद्यार्थी परिषद्
चार दशक से अधिक से निरन्तर संघर्षशील है तथा लगातार भ्रष्टाचारी दानव पर वार करती
रही है। भारत की आत्मा और भारत की अधिकांश जनता गांवों में बसती है,। इस तथ्य को ध्यान
में रखते हुये ग्राम विकास की आवश्यकता का अनुभव करके अभाविप ने १९७८ में ’ग्रामोत्थान
हेतु युवा’ अभियान प्रारम्भ किया किया और ३५० गांवों में प्रभावशाली कार्य किया।
कश्मीर बचाओ अभियान के तहत श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा लहराने
का प्रयास अभाविप ने किया और उसके आह्वान् पर इस कार्य हेतु देश की पूरी युवाशक्ति
उमड़ पड़ी। देश-विदेश को इस बात का भान हो गया कि कश्मीर के अलगाववाद का स्वप्न देखना
मात्र स्वप्न है यह कभी यथार्थ नहीं हो सकता क्योंकि भारत का युवा अभाविप के नेतृत्त्व
में अंगद की तरह पैर जमाये हुये है, वह इस भूमि का एक अंगुल भी न देगा।
बांग्लादेशी घुसपैठ के विरोध में अभाविप ने ’चिकन नेक’ का
घेराव किया और व्यापक राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करते हुये सोती सत्ता को नींद से जगाया
और इस समस्या के प्रति ध्यान अकर्षित करवाया। चाहे वे कश्मीर के अपने ही देश में विस्थापित
पण्डित हों अथवा चीन द्वारा सताये तिब्बती बौद्ध परिषद् हर अन्याय के विरुद्ध चट्टान
सी खड़ी रही है।
अभी हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा विद्यार्थियों
पर अनावश्यक रूप से थोपे जा रहे चार वर्षीय स्नातक पाट्यक्रम के विरुद्ध अभाविप ने
पूरे एक वर्ष के सतत् संघर्ष के बाद ऐतिहासिक सफलता पायी है। जिसके लिये दिल्ली विश्वविद्यालय
के विद्यार्थियों, शिक्षकों, अभाविप के कर्मठ कार्यकर्ताओं सहित नवनिर्वाचित सरकार
एवं नवनियुक्त मानव विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी धन्यवाद एवं भूरि-भूरि प्रशंसा
की पात्र हैं। इन सभी के समेकित प्रयास से एक बार फिर छात्रहित-राष्ट्रहित का उद्घोष
जीवन्त हो उठा।
जिन विषयों को देश का कुम्भकर्णी शासन कभी न देखता न देख
सकता, ऐसे राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय महत्त्व के विषयों पर अभाविप ने सदा शासन व समाज
का ध्यान आकर्षित करवाया है।

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