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योगवाशिष्ठ

योगवाशिष्ठ को महर्षि द्वारा रचित माना जाता है। योगवाशिष्ठ पूर्णतः दार्शनिक ग्रन्थ है। इसमें रामकथा के माध्यमसे मोक्षोपाय का कथन किया गया है इसीलिये इसे मोक्षोपाय शास्त्र भी कहा जाता है। रामकथा इसकी मुख्य कथा हैजिसके अन्तर्गत अवान्तर आख्यानों अवं उपाख्यानों से सच्चिदानन्द ब्रह्म की प्राप्ति का उपाय बताया गया है।योगवाशिष्ठ में महर्षि वशिष्ठ जीए स्वयं कहते हैं कि द्वारा ज्ञात वस्तु का ज्ञान दूसरे को अनुभूत करवाने के लियेदृष्टान्त से बढ़कर कोई दूसरा साधन नही है। इसीलिये इस ग्रन्थ में हमें पग-पग पर दृष्टान्त मिलता है। योगवाशिष्ठकी रचना किसी साधारण मानस द्वारा सम्भव ही नही हो सकती इसकी रचना कोई त्रिकालज्ञ उदात्त ऋषि ही करसकता है जिसका मानस मुक्त मानस हो। क्योंकि बद्ध मानस मुक्त मानस की बात ही नही कर सकता। योगवाशिष्ठका रचनाकार मात्र एक ऋषि ही नहीं वरन् एक कवि भी है। कवि अथवा ऋषि का कार्य मात्र उपदेश देना ही नहींहोता अपितु उपदिष्ट वस्तु का अनुभव करवाना भी होता है। योगवाशिष्ठ के महर्षि ने दार्शनिकता को काव्यात्मकताका सरस सरल सहज कलेवर पहनाकर उसे जन-जन के लिये, प्रत्येक जिज्ञासु के लिये बोधगम्य बना दिया।योगवाशिष्ठ का प्रत्येक पात्र जनसमुदाय में शताब्दियों से रचा-बसा पात्र है जिसके साथ भारतीय जनता कीभारतीय संस्कृति की भावनायें जुड़ी हुई हैं। लोक और शास्त्र में विरोध नही परिलक्षित होता है दोंनो साथ-साथसमानान्तर चलते हैं। योगवाशिष्ठ में लोक और शास्त्र का सुन्दर समन्वय है। इसके आख्यान लौकिक औरलोकोत्तर दोनो विशेषताओं से युक्त हैं। विदुषी चूडाला का आख्यान जिसमें चूडाला अपने पति राजा शिखिध्वज कोकुम्भ का रूप धारणकर ज्ञान प्रदान करती है, उत्कृष्ट कोटि का दार्शनिक सामाजिक आख्यान है। इस आख्यानसे यह भी परिलक्षित होता है कि उस समय स्त्रियाँ भी महान् विदुषी हुआ करती थीं। योगवाशिष्ठ में ज्ञान,कर्म औरभक्ति का सुन्दर समन्वय है। यहाँ जिस कर्म का निरूपण किया गया है वह साधारण लौकिक बन्धनकारी कर्म होकर निष्काम कर्म है। हालांकि श्रीमद्भगवद्गीता में भी निष्काम कर्म का उपदेश है परन्तु उससे यहाँ अन्तर इतनाहै कि गीता में प्रदत्त उपदेश शुष्क दार्शनिक हैं जबकि योगवाशिष्ठ के उपदेश काव्य की उर्वर भूमि पर गुणों औरअलंकारों द्वारा सिंचित होकर सरस एवं सहज हैं।

Comments

Mukesh said…
शोभनम्....
Arvind Mishra said…
इस ग्रन्थ की अपार प्रशंसा सुन कर मैंने गीताप्रेस प्रकाशित इस वैचारिक धरोहर को ले तो लिया है मगर अनेक व्यस्तताओं के कारण विधिवत पठन शुरू नहीं कर सका हूँ -आपके इस परिचयात्मक आलेख ने पढने की इच्छा बलवती कर दी है ..महर्षि वशिष्ठ और पुरुषोत्तम राम के मध्य दार्शनिक संवाद को तो विचारों की उच्चता स्वयमेव मिलनी थी .....
आनंद said…
अत्यधिक महत्वपूर्ण जानकारी आज ममता जी की वजह से प्राप्त हुई यहीं पर ये भी मालूम हो गया की योग-वशिष्ठ ..गीता प्रेस से मिल भी सकता है...आपको कोटिश धन्यवाद ममता जी.

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