आज महिलाएँ घर के बाहर् और भीतर हर जगह असुरक्षित हैं । अभी हाल ही में दिल्ली की एक पत्रकार की हत्याइसका जीता-जागता उदाहरण है। ऐसे में हमारे आश्चर्य की सीमा तब पार हो जाती है जब दिल्ली की मुख्यमन्त्रीशीला दीक्षित इस घटना पर प्रतिक्रिया करते हुए कहती हैं कि सौम्या को रात में नही निकलना चाहिये था यहदुःसाहसिक कार्य है । अब जब भारत की राजधानी दिल्ली में स्त्रियाँ इतनी असुरक्षित हैं तब देश के अन्य भागों कीबात कौन करे? मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित का यह बयान निश्चय ही दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि यदि मुख्यमन्त्री ही ऐसाबयान देने लगेगी तब तो अपराधियों का मनोबल और ऊँचा होगा और स्त्रियों को छेड़ना , बलात्कार करना औरहत्या तक करना उनके लिये चुटकियोँ की बात हो जायेगी। कम से कम हमारे राजनेताओं को ऐसे शुतुरमुर्गीसमाधानयुक्त बयानों से बाज आना चाहिए। ऐसे बयानों से समाज में एक गलत संदेश जाता है । सरकार किस लियेहै जब वह अपने नागरिकों को सुरक्षा तक न मुहैया करा पाये और कोई घटना घटित होने पर उसे दुःसाहस बताये ?
भारतीय संस्कृति में प्रेम के अनेक रूप हैं-वात्सल्य,स्नेह,अनुराग,रति,भक्ति,श्रद्धा आदि। परन्तु वर्तमान समय में प्रेम मात्र एक ही अर्थ में रूढ हो गया है, वो है प्यार जिसको अंग्रेज़ी मे "LOVE" कहते हैं। प्रथमतः प्रेम शब्द कहने पर लोगो के मस्तिष्क में इसी "LOVE" का दृश्य कौंधता है। प्रत्येक शब्द की अपनी संस्कृति होती है । उसके जन्मस्थान की संस्कृति, जहाँ पर उस शब्द का प्रथमतः प्रयोग हुआ। अतः प्रेम और "LOVE" को परस्पर पर्यायवाची मानने की हमारी प्रवृत्ति ने प्रेम शब्द से उसकी पवित्रता छीन ली है। परिणामतः प्रेम शब्द कहने से हमारे मस्तिष्क में अब वह पावन भाव नही आता जो हमें मीरा,सूर, कबीर,तुलसी, जायसी, घनानन्द, बोधा, मतिराम, ताज, रसखान,देव और बिहारी प्रभृत हिन्दी कवियों तथा कालिदास जैसे संस्कृत कवियो की रचनाओं में देखने को मिलता है। आज हम विस्मृत कर चुके हैं कि इस"LOVE" के अतिरिक्त भी प्रेम का कोई स्वरूप होता है। आज का "प्रेम कागज़ी फूलों के गुलदस्तों" में उलझकर अपनी वास्तविक सुगन्ध खो बैठा है। आज हम अपने शाश्वत, सनातन प्रेम के उस स्वरूप को व...
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अच्छा लिखती हो....कभी हमारे ब्लॉग पर भी अपनी उपस्थि्ति दर्ज कराना...........
आजकल ब्लॉगिंग जगत में वर्ड-वेरीफिकेशन को अनपेक्षित माना जाता है. इसे हटा दो तो अच्छा रहे.