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शलभ

शलभ!
तुम जल गये
जलकर मर गये
लेकिन तुम रोये नहीं
इस नन्दनवन में खोये नहीं
क्या तुम्हारे जीवन में
लुभावने अवसर नही आये ?
क्या तुमको कभी हीरक चकाचौंध नही भायी ?
बोलो
बोलते क्यों नहीं?
मौन क्यों हो मुनियों की तरह
कहीं तुम्हारा ये मौन स्वीकरण तो नही ?
या तुम इसे तुच्छ स्थापनीय कोटि का
प्रश्न समझकर
गौतम बुद्ध की तरह अनुत्तरित
रखना चाहते हो ।
सच-सच बताना शलभ
मौन से काम नही चलेगा
ये गौतम बुद्ध का समाज नही है
विज्ञान की विजय है आज
बता दो अपने अपरिग्रह का कारण
नही नार्को टेस्ट से गुजरना पडेगा
यदि नही बताते
तो जाओ शलभ
आज तुम्हें हम छोडते हैं
हमें तुम्हारी मंशा पता चल गयी है
कि तुम अखबारों, पत्रिकाओं का
हज़ारों पन्ना अपने
व्यक्तित्व और कृतित्व से रंगाये बिना
अपना राज़ नही खोलोगे
अभी राज़ खोल देने से कितने लोग जानेगे भला?
यहां किसी को तब तक नही जाना जाता है
जब तक वह हज़ारों वृक्षों की जान लेकर
’पापुलर’ न हो जाय
इस बात को शायद तुम
अच्छी तरह जानते हो
इसीलिये
प्रतीक्षा कर रहे हो मधुमास की
कि जब वह आयेगा तब तुम भी
अपनी "पंचम" तान छोडकर
दूसरों के मल्हार को मात दे दोगे
खैर ठीक है अवश्य मिलेगा
तुमको उचित चढावा
प्रतीक्षा करो मधुमास की
लोग तुम्हारी तान अवश्य सुननें आयेंगे
आश्वस्त रहो
क्योंके आजकल लोगो को
"बेस्ट सेलर" चाहिये
क्वालिटी चाहे कुछ भी हो।


अरे ! ये क्या तुम हमारा आश्वासन सुन
उठ बैठे?
अरे भाई हम तो बस
सहानुभूति दिखाने आये थे
कि कोई यह न कहे
कि बडे खुदगर्ज हैं
शलभ तुमने गलती की जो
तुम हमारी बाते सुन ज़िन्दा हो गये
तुम्हे फिर से मरना होगा
अपने लिये नही
तो कम से कम हमारे लिये
हमारी इज़्ज़त के लिये
तुम्हे इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये
क्योकि तुम हमारे "वादों" से
भली-भांति परिचित हो।

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आपके दूसरे ब्लॉग में भी एक कविता है और इस ब्लॉग में भी एक ही कविता । दोनों ब्लॉग कविता के हैं तो दोनों में किस प्रकार का अन्तर है । एक प्रकार की रचनाएँ एक साथ रखें तो एक साथ अधिक मिल सकेगा पढ़ने वालों को ।
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