Skip to main content

Posts

राष्ट्रद्रोही अपने कुकृत्यों व करतूतों द्वारा JNU में पढ़ने आने वाली देश की प्रज्ञा का अपमान न करें और उसे बदनाम न करें

JNU आजकल राष्ट्रद्रोही गतिविधियों, कश्मीर के अलगाववाद व पाकिस्तान-परस्त नारों के कारण चर्चा में है। कुछ लोगों व गिरोहों की काली करतूत के कारण यह प्रतिष्ठान अपनी प्रतिष्ठा खो रहा है। #JNU वह प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान है जिसने देश को अनेक नीति-नियन्ता, विचारक, शिक्षक, विद्वान व प्रशासक दिये हैं। हमारे सैन्य अधिकारियों को भी JNU डिग्री देता है। राष्ट्र-विकास व राष्ट्र-प्रतिष्ठा के विविध क्षेत्रों में इस विश्वविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यद्यपि यहाँ लगभग हल काल में कुछ राष्ट्रद्रोही व्यक्ति व गिरोह रहे हैं परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि पूरा विश्वविद्यालय ही द्रोही व विध्वंसात्मक है। यहाँ से अनेक ऐसी प्रतिभायें भी प्रसूत हुयी हैं जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया है। अनेक ऐसे लोग भी हुये हैं जो यहाँ विद्यार्थी जीवन में वामपंथ के तिलिस्म में फंसे तो जरूर पर परिसर से बाहर निकलते ही उस तिलिस्म से निकलकर राष्ट्रसेवा में लग गये। अनेक लोग हैं जिन्हें राष्ट्रीय अस्मिता का प्रत्यभिज्ञान हुआ है। #JNU भारत का एक ऐसा विश्वविद्यालय है जहाँ आप न्यूनतम व्यय पर गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा सहजता से
Recent posts

#CPM का चरित्र और #JNU में राष्ट्रद्रोह: एक संबन्ध

सन् 2000 की बात है उस समय पश्चिम बंगाल में #CPM का गुण्डाराज हुआ करता था। उसने रामकृष्ण मिशन को भी गुण्डागर्दी का शिकार बनाया। वे चाहते थे कि मिशन के शिक्षण-संस्थाओं के संचालक संत न होकर कम्युनिस्ट हों और वहाँ कम्युनिस्ट शिक्षकों की नियुक्ति हो। इसके लिये उन्होंने संतो को डरा-धमकाया भी। जब डराने से बात नहीं बनी तब रामकृष्ण मिशन विद्यालय को नगरपालिका द्वारा प्राप्त होने वाले पानी को बन्द करवाकर विद्यार्थियों व शिक्षकों को प्यासा रहने पर मजबूर किया। समाचार पत्रों के विरोध के कारण मार्क्सवादियों को थोड़ा पीछे हटना पड़ा। रामकृष्ण मिशन के प्रसिद्ध नरेन्द्रपुर विद्यालय में जिस समय स्वामी लोकेश्वरानन्द जी अध्यक्ष थे, उस समय मार्क्सवादियों ने वहाँ कर्मचारियों की हड़ताल करवायी। विद्यार्थियों व शिक्षकों का आवासीय परिसर होंने के कारण भोजन-पानीए बन्द हो गया।……….परन्तु विद्यार्थियों और शिक्षकों ने उनके मंसूबों को पूरा नहीं होंने दिया और वे परिसर तथा छात्रावासों में डटे रहे। स्वयं हर प्रकार का काम किया और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की। समाज ने भी यथोचित सहयोग दिया। इस प्रकार CPM की गुण्डा सरकार क

वामपंथ के कुपंथ पर शिकंजा

वामपंथियों और उनके द्वारा समर्थित गिरोहों द्वारा हमेशा से #JNU में राष्ट्रद्रोही गतिविधियाँ होती रही हैं। यह कोई नयी बात नहीं है। देश के प्रतिभावान् विद्यार्थी जो अच्छी शिक्षा हेतु इस विश्वविद्यालय में प्रवेश करते हैं उनको उनके मार्ग से भटकाकर, बरगलाकर, नशेड़ी बनाने और कुछ हद तक राष्ट्रद्रोही बनाने का कार्य भी ये वामपंथी समूह और संगठन करते रहते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हेम मिश्रा है, जिसे महाराष्ट्र पुलिस ने नक्सलवादी गतिविधियों में संलिप्तता के आधार पर गिरफ्तार कर जेल भेजा था। 2010 में जब दन्तेवाड़ा में नक्सलियों द्वारा 76 जवानों की हत्या की गयी थी तब इन्हीं गिरोहों ने गोदावरी छात्रावास के सामने जश्न का आयोजन किया था। उस समय भी इस बार की भाँति #abvp ने इनका कड़ा प्रत्युत्तर दिया था और इनके इस कुकृत्य के विरोध में JNU के आमछात्र सड़क पर उतरे थे। इस बार इनके इस राष्ट्रद्रोही कार्य में नयी बात यह है कि इनके विरुद्ध ऑडियो-विजुवल प्रमाण हैं। मीडिया भी अपेक्षाकृत सकारात्मक भूमिका निभा रही है। पूरे देश में सकारात्मकता की लहर है। सबसे बड़ी बात की इस समय देश में कांग्रेस की रीढ़

योग दिवस: वैश्विक शान्ति और समन्वय की आधारशिला

अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस का मनाया जाना एक परिवर्तन का संकेत है। यह एक Paradigm shift का श्रीगणेश है, जिसमें पूरा विश्व एक साथ है। कापरनिकस के बाद एक परिवर्तन आयाथा, डेकार्ट के साथ एक परिवर्तन आया था जिसने विश्व का नक्शा ही बदल दिया। इस परिवर्तन ने विश्व को बनाया या बिगाड़ा यह एक लम्बा विमर्श है। पर यह तो तय है कि इससे कुछ आबाद हुये तो कुछ बर्बाद हुये, पूरा विश्व एक साथ आह्लादित नहीं हुआ। आज योग दिवस से जो परिवर्तन हो रहा है, आइंसटाइन के बाद से विश्व इस परिवर्तन की आशा कर रहा था। यह एक सकारात्मक परिवर्तन है। यहाँ कहीं संहार नहीं सर्वत्र सृष्टि है, कहीं शस्त्र-प्रहार नहीं सर्वत्र श्रद्धा, भक्ति, अनुरक्ति है। भौतिकता से बँधे संसार की यह मुक्ति है। योगदिवस भौतिकता से अध्यात्म की ओर प्रस्थान है। इस प्रस्थान में पूरा विश्व कदमताल कर रहा है। योगदिवस भारत-भारतीयता की वह विजय है जिसके लिये कभी रक्तपात नहीं हुआ, जिसके लिये कभी अस्त्र-शस्त्र नहीं चमके, जिसने कभी व्यर्थ प्रसार की स्वार्थपूर्ण इच्छा नहीं रखी, जिसने कभी धनबल और बाहुबल के सहारे हृदयों को नहीं जीता। यह ऋषियों की निःस्वार्थ, सेवा, साधन

तुम किस मुँह से बोल रहे हो?

आजकल गहरे लाल से खूनी लाल, रक्तपिपासु लाल और थक-हारकर हल्के लाल बने जितने वामपंथी संगठन और गिरोह इस देश में परजीवियों की तरह पल रहे हैं वे भी कांग्रेसी सुर में अपनी चिरपरिचित शैली में #Lalitmodi प्रकरण पर हुका-हुवाँ-हुवाँ कर रहे हैं। इसमें तनिक भी आश्चर्य नहीं है। यही इन आस्तीन के साँपों की कार्यनीति रही है जिसके कारण ये स्वतन्त्रता के बाद से ही एक दबाव समूह बनाकर भारत सरकार से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपनी बेजा माँगे मनवाते रहें हैं और ऐश फरमाते रहे हैं। ये गरीबों, दलितों एवं महिलाओं के आँसुओं में उपस्थित सोडियम की मात्रा का सौदा करके अपना घरौंदा मजबूत करते रहे हैं। आज जब सरकाअर के विकासोन्मुख नीतियों द्वारा इनके सोडियम के धन्धे में दिनोंदिन कमीं आ रही है और दुकान पर ताला लगने की आशंका है तो ये  उस जोंक की तरह छटपटा रहें हैं जो किसी पशु के शरीर से खून चूस-चूसकर मोटी हो रही थी पर अभी-अभी उस पर नमक दाल दिया गया हो। इन्हें ठीक से पहचानने का यह सुअवसर है। ये वही लोग हैं जो अफजल गुरु की फाँसी का विरोध करते हैं और मानवाधिकार की दुहाई देते हुये मार्च करते हैं। ये वही लोग हैं जो गिलानी

सन्तो आई ’मित्रता’ की आँधी रे!

क्या बात है! आजकल जनता पार्टी "परिवार" एक होने जा रहा है। अरे! न केवल जा रहा है अपितु गले मिलने के लिये आकुल, आतुर है, छटपटा रहा है। अब न कोई समाजवादी पार्टी होगी, न  जनता दल यूनाटेड, न राष्ट्रीय जनता दल, न जनता दल (एस) , न इंडियन नेशनल लोकदल  और न कोई समाजवादी जनता पार्टी, अब बस एक "परिवार?" होगा जनता पार्टी। मुलायम, शरद यादव, नितीश, लालू, देवेगौडा, दुष्यंत चौटाला और कमल मोरारका परस्पर गले मिलने हेतु लपक रहे हैं। यही नहीं वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किये जा रहे हैं तथा उसकी सम्भावनायें भी तलाशी जा रही हैं। आखिर कौन सी वह बात है जो इन सभी शत्रुता के अभिनेताओं  और शत्रुओं में इतना असीम प्रेमरस घोल रही है? यह सोचने की बात है भाई कि कल तक लालू को पानी पी-पीकर कोसने वाले नितीश और नितीश को पानी पी-पीकर गरियाने वाले लालू आज परस्पर स्वस्तिवाचन कर रहे हैं! कौन सा Unifying Factor  है जिसने दिलों की सारी कड़वाहट में मधुमिश्रित कर दिया? स्वाभाविक शत्रुओं और कलाबाजों की ऐसी अद्भुत मित्रता कभी-कभी देखने को मिलती है। अरे नहीं ये स्वाभाविक कलाबाज ऐसे ही नहीं एक हुये हैं। आजकल

नक्सल आतंकवाद-कायर नक्सली

सुकमा में नक्सली आतंकवादियों द्वारा ग्रामीणों की ओट लेकर सीआरपीएफ के जवानों की हत्या बहुत ही कायरतापूर्ण कदम है। नक्सल आन्दोलन सदा से ही हिंसक और कायरतापूर्ण रहा है। कभी भी नक्सलियों ने एक सृजन नहीं किया, बस उजाड़ा है घरों, खेतों, सड़कों, पगड़न्डियों, विद्यालयों, बहनों की माँगों और माताओं की गोद को। भारत में नक्सल आतंकवाद जिस विचारधारा की कोख से पैदा हुआ, वह विचारधारा वस्तुतः शब्दों में जितनी लुभावनी और सुन्दर है, यथार्थ के धरातल पर उतनी की विकृत, हिंसक, बर्बर, भयानक, रक्तरंजित और अमानवीय है। हत्या, लूट, आतंक आदि उसके सहज अस्त्र हैं। वामपन्थ के इतिहास पर यदि हम दृष्टिपाअत करें तो स्तालिन, माओ, पॉल पोट से लेकर भारत के सामयवादी नम्बूदरीपाद, नायर, ज्योति बसु, बुद्धदेव, मानिक सरकार तक सभी ने किसी न किसी रूप में आतंक, हिंसा और भय का सहारा लिया है। साम्यवादी आतंकवाद का ही नाम नक्सलवाद है। साम्यवाअदियों ने स्वयं शक्ति अर्जित करने और अपने शक्ति को बनाये रखने के लिये vampire की तरह गरीब, शोषित, पीड़ित, भोलीभाली जनता का रक्त चूसा है और जीवन प्राप्त किया है।  नक्सली आतंक के मास्टरमाइंड चारू मजू